लंबे समय तक चलते मुकदमे परिवारों के लिए पीड़ादायक, पर कानून की अपनी सीमा – सत्र न्यायालय दिल्ली

गाजियाबाद के एक व्यक्ति की शादी 1991 में हुई और 1992 में हीं पत्नी ने लगा दिए दहेज प्रताड़ना के आरोप साथ हीं पत्नी ने अपने कीमती एवं अन्य सामानो की जब्ती का भी मुकदमा दर्ज करा दिया.

Court in Family Matters

पुरुष अधिकार के लिए कार्य कर रहे कार्यकर्ताओं ने इसे समाज की विडम्बना और परिवार तोड़ने वाला कानून बताया. आगे कहा कि अदालत और जाँच अधिकारी ऐसे मुकदमे में बयान देकर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं.

मीडिया ख़बरों के मुताबिक, मुकदमे के आरोपियों में सास, ससुर के साथ दो नाबालिग देवर भी नामजद थे. मुकदमे की सुनवाई के दौरान ही चाचा ससुर और दादी सास की मौत हो गई थी, वही दोनों देवरों को नबालिग साबित करने मे लगे 27 साल.

अदालत ने कहा, यह परिवारों के लिए बहुत ही पीड़ादायक है जब मुकदमे सालों चलती है, पर कानून भी अपनी सीमा में बंधा है.

वर्ष 2012 में निचली अदालत ने आरोपीयों को 3 वर्ष की सजा सुनाई गई थी जिसकी चुनौती कड़करडुमा, दिल्ली के सत्र न्यायालय में दी थी.

सत्र न्यायालय ने पाया कि पीड़िता द्वारा कंप्लेंट मे लिखे किसी भी घटना का सही वर्णन नहीं कर पाई और ना ही सामान हीं वापस लिया, और सत्र न्यायालय ने इसे आधार मानते हुए मामला को खारिज कर दिया.

Related posts

Supreme Court Restores Higher Interim Maintenance for Wife in High-Profile Divorce Case

Kerala HC: Liberal Approach Needed for NOC for Passport in Matrimonial Disputes

Karnataka High Court gives releif to Prakash family in False Dowry harassment Case

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Read More