उच्च न्यायालय में दायर की गयी याचिका में पुरुष के नाम को उजागर नहीं करने के लिए भारतीय दंड संहिता में संशोधन की माँग की है. तर्क यह है कि जब तक किसी पर आरोप सिद्ध नहीं हो जाता तब तक आरोपी मुल्जिम कहलाता है.
जबलपूर के याचिकाकर्ता डॉ. पीजी नाजपांडे और डॉ. एमए खान ने अपने याचिका में कहा पुरुष सम्मान को ठेश ना पहुंचे इसलिए आरोप सिद्ध होने तक नाम उजागर नहीं किया जाए जिस तरह पीड़िता का नाम यौन शोषण के मामले में उजागर नहीं किया जाता है. याचिका में पुरुष का नाम गुप्त रखने की माँग की है और अदालत के फैसला आने तक आरोपी पुरुष का नाम उजागर नहीं करने का निर्देश जारी करने की मांग की.
याचिका में संविधान का हवाला देते हुए बताया गया है कि लिंग भेद अशमवैधानिक है साथ ही नेशनल क्राइम रेकॉर्ड ब्यूरो का हवाला देते हुए बताया है कि यौन शोषण के 76 प्रतिशत और दहेज उत्पीड़न के 93 प्रतिशत आरोप गलत पाए गए हैं.
याचिका में मधुर भंडारकर के मामले की दुहाई देते हुआ बताया कि पीड़िता ने बाद में अपने आरोप वापस ले लिया, परंतु इन सब में भंडारकर की छवि को कहीं ना कहीं आघात हुआ है.