परिवार में शिक्षा के लिए बेटियों और बेटों को लगभग एक समान अवसर, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान का IAS परीक्षा में असर नहीं

IAS Scorer list

IAS Scorer list

वर्ष 2015 में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के निगरानी में “बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ” योजना की शुरुआत की गयी थी.

संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) के सिविल सेवा की परीक्षा देश में सबसे ज्यादा कठिन माना जाता है. इस परीक्षा में लाखों की संख्या में परीक्षार्थी भाग लेते हैं, परंतु चयन सिर्फ चुनिंदा सैकड़ो छात्रों का ही होता है. ऐसे परीक्षाओं में लड़कियों का उत्तीर्ण होना, सामाजिक बदलाव को दर्शाता है.

सिविल सेवा की इतनी कठिन परीक्षा में उत्तीर्ण होना समाज में गर्व की बात तो है ही, अपने आप में गरवान्वित होने जैसा है. सालों की कड़ी मेहनत, दिन-रात एक कर पूरी तन्मयता से जुड़ने के बाद ही सफलता मिल पाती है. इस तरह की परीक्षा की तैयारी में जुटे छात्रों को माँ-पिता और समाज का भी पूरा समर्थन होता है.

परिवार हर संभव छात्र-छात्राओं की मदद करते हैं. कई बार तो गरीब परिवार से भी बच्चे उत्तीर्ण होते हैं, जिनके परिवार आर्थिक तंगी से जूझते हुए भी बच्चों को तैयारी में जुट रहने देते हैं. ऐसे हालातों में सिर्फ लड़के हीं नहीं, लड़कियाँ भी तैयारी करती हैं, सभी वर्ग के परीक्षार्थियों के लिए परीक्षा के प्रश्न समान हैं, तैयारी का तरीका भी समान है.

सिविल सेवा में लड़कियों के उत्तीर्ण होने की लगभाग भागीदारी 25% से ज्यादा है. जहाँ समाज और व्यवस्था का मानना है कि लड़कियाँ सुरक्षित नहीं, तो 25% भागीदारी कम नहीं मानी जाएगी.

“बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ” योजना का मूलभूत उद्देश्य बालिकाओं को शिक्षा, अच्छी परवरिश और सुरक्षा दी जा सके, और बालिकाओं के सशक्तिकरण को तीव्र गति दी जा सके.

हालाँकि 2015 में शुरू की गयी “बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ” योजना आज एक आंदोलन का रूप ले लिया है, फिर भी यूपीएससी सिविल सेवा में इस आंदोलन का कोई ज्यादा फर्क नहीं दिखता है, क्यूँकि छात्राओं के उत्तीर्ण होने का प्रतिशत लगभाग समान हीं रहा है.

ऐसे कठिन परीक्षा और कठिन परिवारिक परिस्थितियों में जब माँ-पिता अपने बच्चियों को सिविल सेवा परीक्षा के लिए प्रेरित और सहयोग कर रहे, तो यह साफ दर्शाता है कि, समाज और परिवार में शिक्षा के लिए बेटियों और बेटों को लगभाग एक से हीं अवसर दिया जा रहा है, और समाज ने स्वयं हीं अपने विचारों में खासकर बालिकाओं के शिक्षा के प्रति जागरूकता दिखायी है.

2012 में लगभाग उत्तीर्ण बालिकाओं की भागीदारी 32% थी, वही यह प्रतिशत 2013, 2014 मे 30% थी, 2016 मे भी लगभाग 30% रही और 2018 में 31% रही.

वहीं बालिकाओं ने वर्ष 2010, 2011 एवं 2012 में लगातार शीर्ष पर अपना मुकाम बनाया, इसी तरह 2014, 2015 एवं 2016 में भी बालिकाओं ने दुबारा लगातार तीन वर्षों तक शीर्ष में मुकाम हासिल किया.

इसबार 2018 के टॉपर कनिष्क कटारिया रहे हैं, जो कि IIT, बॉम्बे से पढे हैं और इनका ऑप्शनल विषय गणित था. लोगों की बधाइयाँ मिल रही है, यह एक क्षण होता है जब सालों की मेहनत का फल मिलता है. हमारे टीम की ओर से भी मुबारकबाद और देश की उन्नति में सहयोग की कामना करते हैं.

Related posts

Merchant Navy Officer brutally killed by Wife and Her Lover in Meerut: Shocked the Nation

Nishant Tripathi Suicide case, blames wife and her aunt

Women’s Rights Activist Mother Could Not Save Her Son Nishant Tripathi

Marital Harassment Drives Former MLA’s Son to Attempt Suicide in Madhya Pradesh